गुजरात के इतिहास की जब भी बात की जाती हे तो उसमे एक वंश योगदान को जरूर से याद किया जाता हे और उस वंश का नाम हे सोलंकी वंश।
इस वंश में रानी मीनलदेवी और राजा सिद्धराज जयसिंह ने गुजरात के राज्य का ऐसा विकास किया की इस वंश को इतिहास में अमर कर दिया। आज भी सोलंकी वंश के राज को गुजरात के इतिहास का स्वर्ण समय के नाम से जाना जाता हे।
चलिए आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से गुजरात के सबसे पराक्रमी राजा यानी की सिद्धराज सोलंकी के बारें में कुछ बेहद ही ज्यादा महत्वपूर्ण जानकारी देने का प्रयास करेंगे।
कौन था राजा सिद्धराज जयसिंह?
सिद्धराज जयसिंह का जन्म गुजरात के पालनपुर शहर में हुआ था। आज के समय में यह शहर उत्तर गुजरात के बनासकांठा जिले में आया हुआ हे। उसकी माता का नाम मीनलदेवी और पिता का नाम कर्णदेव सोलंकी था। ऐसा कहा जाता हे की सिद्धराज जयसिंह के जन्म होने के थोड़े समय बाद ही उसके पिता कर्णदेव सोलंकी का मालवा के राजा के साथ हुए युद्ध में निधन हो गया था और उस समय सिद्धराज जयसिंह की उम्र महज ३ साल की थी।
राजा कर्णदेव सोलंकी की मृत्यु के बाद गुजरात के पाटन शहर में तहश नहश होना शरू हो गया था। उस समय राज्य के ही कुछ जाने माने लोग भी विद्रोह कर रहे थे। ऐसे में सिद्धराज जयसिंह की माता ने महज ३ साल की उम्र में उसका राज्यभिषेक किया और जब तक वह बड़ा ना हो जाएँ तब तक पाटन की गद्दी को संभालने का प्रयास किया। हालांकि पाटन की राज्यसभा में भी कई सारे लोगो ने मीनलदेवी के खुद शासक बनने के निर्णय का विरोध भी किया था लेकिन वह अपनी बुद्धि और चातुर्य की वजह से भी यह सभी विद्रोह को शांत करने में सफल रही थी।
Contribution of Meenaldevi
मीनलदेवी पाटन को भारत का सबसे समृद्ध और प्रतापी राज्य बनाना चाहती थी और वह यह बात भी बखूबी जानती थी की अगर पाटन को समृद्ध राज्य बनाना हे तो उसे एक ऐसे राजा की जरूर होगी जो अपने आप में बहुत ही ज्यादा पराक्रमी भी हो। इस वजह से वह यह चाहती थी की उसका बेटा सिद्धराज जयसिंह गुजरात का सबसे प्रसिद्द राजा बने।
ऐसा कहा जाता हे की जब सिद्धराज जयसिंह बहुत ही ज्यादा छोटा था उस समय से ही उसकी माता मीनलदेवीने उसी समय से उसे पढ़ाई के साथ साथ शस्त्र का ज्ञान देना भी शरू कर दिया था। यह शायद मीनलदेवी की दूरंदेशी ही थी जिसने सिद्धराज जयसिंह को गुजरात का सबसे बड़ा राजा बनाने में बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
सिद्धराज जब पाटन की राजगद्दी पे बैठा था उस समय उसकी उम्र महज १६ साल की थी लेकिन वह उसी उम्र से बहुत ही ज्यादा पराक्रमी भी था। गुजरात के इतिहास में लिखी गई कथाओ के अनुसार ऐसा कहा जाता हे की उसने सिद्धपुर के जंगल में आमजनता को परेशान करनेवाले डाकुओ के सरदार बर्बरक को हराया था। इसके बाद उसने मालवा के राजा यशोवर्मा और जूनागढ़ के राजा रा’मांडलिक भी हराया था और इस तरह वह गुजरात का सबसे बड़ा राजा भी बना था।
पाटन के राजा सिध्दराज जयसिंह को स्थापत्य कला का भी बहुत ही ज्यादा शौख था और इस वजह से ही उसने अपने कार्यकाल के दौरान डभोई का किल्ला, रूद्र महालय, सहस्त्रलिंग तालाब एवं देवी राणकदेवी मंदिर जैसे बहुत ही बेहतरीन शिल्प स्थापत्यों का भी निर्माण करवाया था। इसके अलावा उसने अपने राज्य में धर्म और कला को भी बहुत ही ज्यादा प्राधान्य दिया था। उसने अपने समय के दौरान राज्य में मदिरापान और मत्सय खाने पे प्रतिबन्ध लगा दिया था।
ऐसा कहा जाता हे की सिद्धराज जयसिंह अपनी माता का बहुत ही ज्यादा सन्मान करता था और इस वजह से ही उसने अपने जीवनकाल में अपनी माता के द्वारा दी जानेवाली हर एक आज्ञा का पालन किया था और कुछ इस तरह से उसने अपनी माता का ऋण चुकाया था। सिद्धराज जयसिंह की पत्नी का नाम ललितादेवी था और वह एक बहुत ही ज्यादा धार्मिक वृति की स्त्री थी।
सिद्धराज जयसिंह को एक पुत्री भी थी जिसका विवाह राजस्थान के एक प्रसिद्द राजा के साथ हुआ था। उसे कोई भी पुत्र नहीं था और इस वजह से उसकी मृत्यु के बाद गुजरात के गद्दी में कुमारपाल नाम का एक राजा राज करने के लिए आया था। सिद्धराज जयसिंहने एक जैन मुनि हेमचंद्राचार्य के साथ मिलकर गुजराती भाषा का सबसे बड़ा ग्रन्थ बनवाया था जिसका नाम सिद्धहेमशब्दानुशासन था। इस ग्रन्थ के गुजरात के व्याकरण का सबसे बड़ा ग्रन्थ माना जाता हे।
Final Conclusion on Siddhraj Jaysinh History in Hindi
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