Queen Meenaldevi History in Hindi
दोस्तों आप सभी लोगो ने गुजरात के इतिहास के बारें में जरूर से थोड़ा बहुत तो पढ़ा ही होगा। गुजरात के इतिहास की जब भी बात की जाती हे उस समय सोलंकी वंश के राज को जरूर से याद किया जाता हे।
इतिहास में लिखी गई कथाओ के अनुसार हमें यह जानने को मिला हे की सोलंकी वंश में राजा सिद्धराज जयसिंह और राजमाता मीनलदेवीने बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिया था। चलिए आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से राजमाता मीनलदेवी के बारें में कुछ बेहद ही ज्यादा महत्वपूर्ण जानकारी देने का प्रयास करेंगे।
Meenaldevi History in Hindi
मीनलदेवी का जन्म कर्णाटक के एक राजा पुल्केशीके यहाँ पे हुआ था। ऐसा कहा जाता था की मीनलदेवी बचपन से ही बहुत ही ज्यादा साहसिक थी और इस वजह से ही वह एक महिला होने के बावजूद सभ तरह के शस्त्र चलाना जानती थी।
इस वजह से ही उसकी कीर्ति पुरे भारत में कई जगह पे फैली हुई थी। जैसे ही वह बड़ी होती चली गई राजा पुलकेशी को उसके विवाह की चिंता सताने लगी और इस वजह से उसने रानी उदयमति के साथ मिलकर अपनी बेटी का विवाह उसके पुत्र राजा कर्णदेव सोलंकी के साथ तय कर दिया था।
कहा जाता हे की राजा कर्णदेव जिसने अहमबाद नगरी को भी स्थापित किया था वह अपनी माता उदयमति का बहुत ही ज्यादा सन्मान भी करता था और इस वजह से ही उसने अपनी माता के द्वारा लिए गए उसके विवाह के निर्णय का सन्मान करते हुए मन्यालादेवी को देखे बिना ही विवाह के लिए हामी भर दी थी।
लेकिन जब उसने विवाह के मंडप में रानी मन्यालादेवी का कुरूप देखा तो उसने विवाह के लिए इनकार कर दिया था। हालांकि अपनी माता उदयमति के कहने पर उसने विवाह कर लिया और बाद में मन्यालादेवी अपने पति कर्णदेव सोलंकी के साथ गुजरात के पाटन शहर में आ गई थी|
गुजरात में आने के बाद रानी मान्यालादेवी ने अपना नाम बदलकर मीनलदेवी कर दिया था। विवाह के शरुआती सालों में तो मीनलदेवी का जीवन बहुत ही ज्यादा हंसी ख़ुशी में बिता था और इसी दौरान उसने एक पुत्र रत्न को भी जन्म दिया था जिसका नाम सिद्धराज जयसिंह दिया गया था। यहीं सिद्धराज जयसिंह आगे चलकर गुजरात और सोलंकीवंश का सबसे ज्यादा पराक्रमी राजा बना था जिसे दुनिया आज भी याद करती हे।
मीनलदेवी ने जब संभाला था गुजरात की रानी का पद।
सिद्धराज जयसिंह का जन्म होने के बाद मीनलदेवी को बहुत ही ज्यादा ख़ुशी हुई थी। इस ख़ुशी में उसने गुजरात के पालनपुर शहर में एक भव्य शिव मंदिर का भी निर्माण करवाया था। हालांकि मीनलदेवी को यह नहीं पता था की सिद्धराज जयसिंह का जन्म होने के थोड़े समय बाद ही उसके सर पर बहुत ही बड़ी आफत आनेवाली हे।
दरसल मालवा के राजा के साथ युद्ध में मीनलदेवी के पति एवं सिद्धराज जयसिंह के पिता कर्णदेव सोलंकी की मृत्यु हो जाती हे। जिस समय उसकी मृत्यु हो जाती हे तब सिद्धराज की उम्र महज तीन साल थी और पाटन का समग्र राज्य छिन्नभिन्न हो गया था। इन परिस्थितियों में मीनलदेवीने सिद्धराज का राज्याभिषेक किया और बाद में उसके बड़े होने तक गुजरात की रानी बनकर राज्य का वहीवट करने का निर्णय किया था।
दरसल मीनलदेवी एक बहुत ही प्रजा प्रिय रानी थी और उसने अपने राज्य में प्रजा को सुखी और खुश देखने के लिए बहुत ही सारा कार्य भी किया था। उसके ही कहने पर सिद्धराज जयसिंहने राणकदेवी का मंदिर भी बंधवाया था और सोमनाथ की यात्रा करनेवाले श्रद्धालुओं का यात्रा शुल्क भी माफ़ किया था।
इसके अलावा भी आपको इतिहास में इस रानी के कई सारे ऐसे किस्से मिल जायएंगे जो आपको इस बात का प्रमाण देते हे की वह क्यों राजमाता कहलाने के लायक थी। आज भी जब गुजरात के इतिहास के बारें में बात की जाती हे तब इस रानी को अवश्य याद किया जाता हे |
Final Conclusion on Queen Meenaldevi History in Hindi
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